आज हम जिस शिव मंदिर के बारे में आपको बताने जा रहे हैं उसकी खासियत ये हैं की यहाँ स्थापित शिवलिंग की सबसे पहले पूजा पांडवों की माता कुंती नें की थी । गोरखपुर से 60 किमी दूर संतकबीरनगर जिले के खलीलाबाद में बाबा तामेश्वरनाथ का धाम स्थित है.। द्वापर युग में पांडवों को लाक्षागृह में जलाकर मारने की कोशिश नाकामयाब हो गई थी। पांडव अपना अज्ञातवास पूरा करने के लिए विराटनगर जा रहे थे। तभी यहां पर आकर उन्होंने आराम किया था। पांडवों की मां कुंती महादेव की भक्त थीं। उन्होंने यहां पर प्राकृतिक रूप से निकले शिवलिंग की पूजा की और बेटों के लिए प्रार्थना की। तभी से यहां पर भगवान तामेश्वर की पूजा-अर्चना की जाती है, जो आज भी जारी है।
स्थानीय निवासी रामेश्वर ने बताया कि खलीलाबाद के मुस्लिम शासक खलीलुरहमान ने इस मंदिर को नष्ट करने और यहां से हटाने की काफी कोशिश की, लेकिन वो सफल नहीं हो सका। थक-हारकर उसने शिवलिंग के आगे हाथ जोड़े और वहां से चला गया। इसके बाद एक राजा द्वारा इस मंदिर का पूरी तरह से निर्माण कराया गया।
मंदिर के पुजारी शिवदत्त भारती ‘गोस्वामी’ ने बताया कि भगवान शिव का नाम तामेश्वर इसलिए पड़ा, क्योंकि आदिकाल में ये नगर ताम्रगढ़ के नाम से जाना जाता था। औरंगजेब के शासनकाल में जब हिंदुओं का जबरन धर्म परिवर्तन कराया जाने लगा तो लोग यहां से भागकर नेपाल चले गए। जो बच गए, वे बाबा की शरण में आ गए। इसके बाद शिवजी ने उनकी रक्षा की। इसी वजह से उन्हें तामेश्वरनाथ के नाम से जाना जाने लगा।